आओ आज बात करते हैं ज़िन्दगी की, बचपन में जिसे माँ की गोद में जीते थे,
कुछ बड़े हुए तोह खुले मैदानों और बगीचों में जीते थे,
स्कूल के गलियारों में जीते थे , परचून की दुकानों में जीते थे,
आओ आज बात करते हैं ज़िन्दगी की, जिसे बिना समझे जीते थे ||
आओ आज बात करते हैं मोहब्बत की,
बचपन में जो साथ टिफ़िन खाने पे होती थी,
कुछ बड़े हुए तोह हाथ पकड़ने पे होती थी,
स्कूल से पिकनिक जाने के बहाने होती थी,
होमवर्क निपटने के बहाने होती थी,
आओ आज बात करते हैं मोहब्बत की जो बिना समझाए होती थी ||
आओ आज बात करते हैं तरक्की की,
बचपन में जो खुद के पैरों पे खड़े होने पे होती थी,
कुछ बड़े हुए तोह कविता सुनाने पे होती थी,
मैडल लेन पे होती थी,
पेंसिल छोड़कर पेन चलाने पे होती थी ,
आओ आज बात करते हैं तरक्की की जो बिना पैसा कमाए होती थी ||